
प्रस्तावना
प्रयागराज, जिसे कभी इलाहाबाद कहा जाता था, भारत का एक ऐतिहासिक और धार्मिक शहर है। यह वह जगह है जहां गंगा, यमुना और सरस्वती तीन पवित्र नदियाँ मिलती हैं — त्रिवेणी संगम के रूप में। यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु संगम स्नान और धार्मिक आयोजनों में भाग लेने आते हैं। लेकिन जुलाई 2025 में, इस श्रद्धा के शहर को एक गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ा — बाढ़।
गंगा और यमुना दोनों नदियों का जलस्तर इतनी तेजी से बढ़ा कि संगम मार्ग और लेटे हुए हनुमान मंदिर की दीवारें पानी में डूब गईं। यह स्थिति न केवल धार्मिक आस्था के लिए खतरा बनी बल्कि प्रशासन और पर्यावरणीय प्रबंधन की असफलता को भी उजागर कर गई।
प्रयागराज बाढ़ 2025 की पृष्ठभूमि
बाढ़ कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार जो हुआ वो असाधारण है। 2025 की मानसूनी बारिश सामान्य से 34% अधिक दर्ज की गई, जिसके चलते प्रयागराज के आसपास की नदियों में जलस्तर तेजी से बढ़ा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, टिहरी डैम और नरौरा बैराज से भारी मात्रा में पानी छोड़ा गया, जो कुछ ही दिनों में गंगा और यमुना के रास्ते प्रयागराज पहुंच गया।
बाढ़ के कारण – सिर्फ बारिश नहीं, बल्कि प्रशासनिक चूक भी
1. लगातार भारी बारिश और बादल फटना
उत्तराखंड और पूर्वी यूपी में अत्यधिक वर्षा के चलते नदियों में पानी की मात्रा बहुत बढ़ गई। सहायक नदियों के जलस्तर में भी उछाल आया।
2. डैम से अचानक पानी छोड़ा जाना
बिना advance warning के जलाशयों से छोड़े गए पानी ने प्रयागराज में संकट और गहरा दिया। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर समय पर चेतावनी दी जाती, तो तैयारी बेहतर होती।
3. नदी तटों पर अतिक्रमण और सिल्टिंग
पिछले कुछ वर्षों में गंगा और यमुना के किनारे बसे इलाकों में तेजी से अतिक्रमण हुआ है। साथ ही, नदियों की गहराई कम होने से पानी आसानी से बाहर निकल जाता है।
4. नगर निगम की लापरवाही
प्रयागराज नगर निगम ने जल निकासी और ड्रेनेज सिस्टम की समय पर सफाई नहीं की। यही कारण है कि बारिश और नदी के पानी ने मिलकर पूरा शहर डुबो दिया।
बाढ़ का धार्मिक स्थलों पर प्रभाव
लेटे हुए हनुमान मंदिर की स्थिति
यह मंदिर संगम से थोड़ी दूरी पर स्थित है और हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। 2025 में पहली बार मंदिर की दीवारें बाढ़ के पानी में डूबी पाई गईं। मुख्य गर्भगृह तक भले ही पानी न पहुँचा हो, लेकिन मंदिर का प्रवेश द्वार और बाहरी परिसर पूरी तरह जलमग्न हो गया।
संगम घाट की दुर्दशा
संगम मार्ग और स्नान घाटों पर 4 फीट तक पानी भर चुका है। श्रद्धालु अब नावों से संगम तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन ने इसे फिलहाल बंद कर रखा है।
धार्मिक आयोजनों पर रोक
श्रावण मास के चलते चल रही कांवड़ यात्रा और गंगा आरती जैसी गतिविधियाँ रोक दी गई हैं। प्रशासन ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से मंदिरों और घाटों के आसपास धारा 144 लागू की है।
प्रशासन की तैयारियाँ: राहत और बचाव
प्रयागराज जिला प्रशासन ने बाढ़ से निपटने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए:
- NDRF और SDRF की 6 टीमें तैनात की गई हैं।
- 60 से अधिक मोटरबोट्स घाट क्षेत्रों में मुहैया कराई गई हैं।
- 1200+ परिवारों को राहत शिविरों में शिफ्ट किया गया है।
- 24×7 कंट्रोल रूम और हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए हैं।
- ड्रोन कैमरों और CCTV के जरिए निगरानी जारी है।
हालांकि राहत कार्य जारी हैं, लेकिन स्थानीय लोग प्रशासन की तैयारियों से संतुष्ट नहीं दिख रहे।
स्थानीय जनता का दर्द
व्यापारियों की परेशानी
संगम घाट और हनुमान मंदिर के पास लगे सैकड़ों प्रसाद, चाय, फूल और पूजा सामग्री बेचने वाले दुकानदारों की रोज़ी-रोटी पर संकट आ गया है। बाढ़ के चलते न कोई श्रद्धालु आ रहा है, न ही दुकानें खुल पा रही हैं।
तीर्थ पुरोहितों की स्थिति
बाढ़ के चलते तीर्थ पुरोहितों को भी अपनी आय का नुकसान हुआ है। पूजा-पाठ के सारे कार्यक्रम रद्द हो चुके हैं। इनकी कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है।
ग्रामीण क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित
प्रयागराज के आसपास के गांवों — झूंसी, फूलपुर, शंकरगढ़, करछना आदि — में बाढ़ का पानी घरों में घुस चुका है। लोग खेतों और ऊँचे स्थलों पर शरण ले रहे हैं।
आँकड़ों में प्रयागराज बाढ़ 2025
| श्रेणी | आँकड़ा |
|---|---|
| जलस्तर (संगम) | 84.3 मीटर (खतरे के निशान से ऊपर) |
| प्रभावित घर | 12,500+ |
| विस्थापित लोग | 42,000+ |
| राहत शिविर | 38 |
| SDRF/NDRF टीमें | 6 |
| मोटरबोट्स तैनात | 60+ |
| स्कूलों की छुट्टी | 1 सप्ताह |
पर्यावरणीय चेतावनी और भविष्य की तैयारियाँ
Climate Change का प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बाढ़ केवल मानसूनी घटना नहीं, बल्कि climate change का एक गंभीर संकेत है। आने वाले वर्षों में बाढ़ और भी तीव्र हो सकती हैं।
स्मार्ट सिटी योजना का असफल क्रियान्वयन
प्रयागराज को Smart City घोषित किए जाने के बावजूद, बाढ़ से निपटने के लिए कोई ठोस drainage infrastructure नहीं बनाया गया। यह प्रशासनिक असफलता का प्रतीक है।
Riverbed management की आवश्यकता
गंगा और यमुना के नदी तल की सफाई, अतिक्रमण हटाना और proper embankments बनाना अब अनिवार्य हो चुका है।
बाढ़ से जुड़ी जनसुरक्षा सलाह
- नदियों के नजदीक न जाएं
- प्रशासन द्वारा जारी चेतावनियों का पालन करें
- गैस, बिजली और जल सप्लाई के स्रोत बंद रखें
- ऊँचे स्थानों पर शरण लें
- सोशल मीडिया पर भ्रामक खबरों से बचें

FAQs (Frequently Asked Questions)
लगातार भारी वर्षा, डैम से अचानक पानी छोड़ा जाना, नदी तटों पर अतिक्रमण और प्रशासनिक लापरवाही बाढ़ के मुख्य कारण हैं।
फिलहाल मंदिर की बाहरी दीवार तक पानी पहुँचा है। गर्भगृह में पानी नहीं गया है, लेकिन खतरा बरकरार है।
प्रशासन के अनुसार जलस्तर सामान्य होने तक संगम स्नान और धार्मिक आयोजनों पर रोक रहेगी।
अब तक 42,000 से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं और 1200+ परिवार राहत शिविरों में हैं।
NDRF, SDRF की टीमें सक्रिय हैं, नावों की व्यवस्था की गई है, राहत शिविर लगाए गए हैं और ड्रोन से निगरानी की जा रही है।
निष्कर्ष
प्रयागराज बाढ़ 2025 ने हमें यह दिखा दिया है कि धार्मिक शहरों में प्राकृतिक आपदाएं केवल एक environmental crisis नहीं होतीं, बल्कि यह आस्था, आजीविका और सामाजिक ढांचे को भी प्रभावित करती हैं। लेटे हुए हनुमान मंदिर तक पानी का पहुँचना न केवल धार्मिक चिंता है, बल्कि प्रशासनिक विफलता का उदाहरण भी है।
इस घटना को एक wake-up call के रूप में देखना चाहिए और समय रहते River Management, Urban Flood Planning और Religious Site Safety को national priority बनाना चाहिए। जब तक सरकार, समाज और प्रशासन मिलकर तैयारी नहीं करेंगे, तब तक हर मानसून हमारे लिए चिंता का कारण बना रहेगा।
